गई भवानी भवन बहोरी | बंदि चरन बोली कर जोरी ||
सीताजी भवानीजी के मंदिरमें में गयीं और उनके चरणों की वंदना करके हाथ जोड़कर बोलीं -
जय जय गिरिबरराज किसोरी | जय महेस मुख चंद चकोरी ||
जय गजबदन षडानन माता | जगत जननि दामिनि दुति गाता ||
हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो; हे महादेवजी के मुखरूपी चन्द्रमा की ओर टकटकी लगाकर देखनेवाली चकोरी ! आपकी जय हो; हे हाथीके मुखवाले गणेशजी और छह मुखवाले स्वामी कार्तिक जी की माता ! हे जगतजननी ! हे बिजली की सी कांति युक्त शरीरवाली ! आपकी जय हो !
नहि तव आदि मध्य अवसाना | अमित प्रभाऊ बेदु नहि जाना |
भव भव बिभव पराभव कारिनि | बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि ||
आपका न आदि है, न मध्य है और न अंत है | आपके असीम प्रभाव को वेद भी नही जानते | आप संसार को उत्पन्न, पालन और नाश करनेवाली हैं | विश्व को मोहित करनेवाली और स्वतंत्र रूपसे विहार करनेवाली हैं ||
Nice
ReplyDeleteRadhe Radhe
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