Sunday, 3 April 2016

हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अंतकाल में जिस - जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस - उसको ही प्राप्त होता है, क्योकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है |

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम | तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ||

हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अंतकाल में जिस - जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस - उसको ही प्राप्त होता है, क्योकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है |

Shree Krishna: O Arjuna! The man in the agonal - remember the feeling of the body gives up, that - it receives only, because he is always filled with the same sense.

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च | मय्यर्पित्मनोबुद्धिर्मामेवैश्यस्यसन्शयम ||

इसलिए हे अर्जुन ! तू सब समय में निरन्तर मेरा स्मरण कर और युध्द भी कर | इस प्रकार मुझमे अर्पण किये हुए मन बुद्धि से युक्त होकर तू निसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा |

Therefore, O Arjuna! Remember me at all times and constantly doing battle. Once you will have my feeling all the time; of course you will get me.

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