मच्चित्ता मदगत्प्राणा बोधयन्तः परस्परं |
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ||
श्री कृष्ण : अर्जुन, निरन्तर मुझमे मन लगानेवाले और मुझमे ही प्राणों को अर्पण करनेवाले भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जनाते हुए तथा गुण और प्रभावसहित मेरा कथन करते हुए ही निरन्तर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरन्तर रमण करते हैं |
Shree Krishna to Arjun: Devotees who always think about me, have dedicated their life to me, by talking about my worship and my power, remains satisfied with the life and they always live in my heart.
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