रुक्मिणी जी कहती हैं :
ऐसे वर को क्या वरू, जो जन्मे और मर जाये
वरिये गिरिधर लाल को, जुड़ल्यो अमर होइ जाये
आओ मेरी सखियो मुझे मेहदी लगा दो (२) मेहदी लगा दो मुझे सुन्दर सजा दो (२)
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो (२)
सत्संग में मेरी बात चलायी (२) सतगुरु ने मेरी किन्ही रे सगाई (२)
उनको बुला के हथलेवा तो करा दो (२) मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो (२)
आओ मेरी सखियो मुझे मेहदी लगा दो (२) मेहदी लगा दो मुझे सुन्दर सजा दो (२)
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो (२)
ऐसी ओढु चुनरी जो रंग नाहीं छूटे (२) इस वरू दूल्हा जो कबहुँ न छूटे (२)
आज मेरी मोतियों से मांग भरा दो (२) मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो (२)
आओ मेरी सखियो मुझे मेहदी लगा दो (२) मेहदी लगा दो मुझे सुन्दर सजा दो (२)
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो (२)
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